एसआईआर से लोकतंत्र को खतरा: वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं लाखों लोग

स्वदेशी टाइम्स, कोलकाता: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी लेनिनवादी) लिबरेशन ने बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर कहा कि यह देश की चुनावी परंपराओं से पूरी तरह हटकर है। पार्टी ने कहा कि यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित कर सकती है और चुनाव में धोखाधड़ी को बढ़ावा दे सकती है। भाकपा (माले) लिबरेशन विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा रही है।

पार्टी के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इसे नोटबंदी जैसी विघटनकारी प्रक्रिया बताया और आरोप लगाया कि इसका मकसद सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की मूल भावना से छेड़छाड़ करना है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग नागरिकता तय करने के वाली संस्था नहीं है। लेकिन 75 साल में ऐसा पहली बार हुआ है कि लोगों से उनकी नागरिकता साबित करने को कहा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह फैसला चुनावी प्रक्रिया से पूरी तरह अलग है और भारत के लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
भाकपा (माले) लिबरेशन और महागठबंधन की ओर से इस प्रक्रिया का जोरदार विरोध किया गया है। लेकिन इसके बावजूद बिहार में यह प्रक्रिया जारी है। भट्टाचार्य ने कहा कि उनकी पार्टी को आशंका थी कि प्रक्रिया शुरू होते ही बड़े पैमाने पर मतदाता सूची से नाम हटाए जाएंगे। करीब दो करोड़ लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं।
अब तक के घटनाक्रम में उनकी आशंका सही साबित हुई है। 65 लाख नाम अब तक हटाए जा चुके हैं और तीन लाख लोगों को नोटिस भेजा जा चुका है। उन्होंने कहा कि यह कोई कल्पना नहीं, सच में हो रहा है। भट्टाचार्य ने दावा किया कि हटाए गए नामों में एक भी विदेशी घुसपैठिया नहीं था। 18 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट केआदेश के बाद जब चुनाव आयोग को हटाए गए नामों की सूची सार्वजनिक करनी पड़ी, तब यह साफ हुआ कि उनमें एक भी बांग्लादेश, नेपाल या म्यांमार का नागरिक नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा की ओर से फैलाया गया घुसपैठिया का डर पूरी तरह झूठ निकला।

भट्टाचार्य ने दावा किया कि बिहार में जुलाई से चलाए गए तीन जन अभियानों के चलते चुनाव आयोग को तीन बड़े फैसलों में बदलाव करना पड़ा। पहले चुनाव आयोग ने कहा था कि सभी आठ करोड़ मतदाताओं को 25 जुलाई तक फोटो और दस्तावेजों सहित फॉर्म जमा करना होगा। लेकिन जनता के विरोध के बाद यह आदेश बदल दिया गया। अब केवल  फॉर्म देना था, दस्तावेज नहीं। पहली बार चुनाव पीछे हटना पड़ा। दूसरी बात 65 लाख नाम हटाने के बाद आयोग को सुप्रीम के दखल के बाद ही हटाए गए नामों की सूची सार्वजनिक करनी पड़ी। तीसरी बड़ी बात यह रही कि सितंबर में कोर्ट ने आधार कार्ड को वैध दस्तावेज मानने का निर्देश दिया, जिसे पहले आयोग मानने से इनकार कर रहा था।

उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि आज भी मतदाता सूची से नाम हटाना और चुनावी गड़बड़ी का खतरा बना हुआ है। पहले हर दिन चुनाव आयोग की तरफ से अपडेट मिलते थे, लेकिन अब चु्प्पी है। अचानक महीने के अंत में हमें एक अंतिम सूची मिल जाएगी, जो बंद दरवाजों के पीछे से तैयार हुई होगी। यही सबसे बड़ा खतरा है। भट्टाचार्य ने कहा कि उनकी पार्टी के मुताबिक यह पूरी प्रक्रिया असांविधानिक है। उन्होंने चेतावनी दी कि हो सकता है कोर्ट इसे बाद में गलत ठहराए, लेकिन तब तक बहुत देर हो जाएगी और करोड़ों लोग वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया, वैसे ही एसआईआर ने चुनावी प्रक्रिया को हिला दिया है। दोनों ही फैसले अचानक लिए गए, मनमाने थे और समाज पर भारी असर डालने वाले साबित हुए। फिर भी जैसे लोग नोटबंदी के असर से उबरे, वैसे ही बिहार भी इस संकट से उबर जाएगा और बदलाव का एक मजबूत संदेश देगा।

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