भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में ‘नॉनवेज दूध’ बना बड़ी रुकावट, आयात को लेकर गहराया विवाद

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स्वदेशी टाइम्स, दिल्ली; भारत और अमेरिका के बीच प्रस्‍तावित ट्रेड डील (India-US Trade Deal) की राह में एक ऐसा मुद्दा सामने आया है, जो एक बड़ी बाधा बन गया है. वो मुद्दा है- अमेरिकी डेयरी उत्पादों के आयात की अनुमति. भारत इसमें हिचकिचा रहा है. अमेरिका का डेयरी प्रोडक्‍ट्स, जिसे भारत में ‘नॉनवेज दूध’ (Non-Veg Milk) कहा जा रहा है, वो यहां कई तरह की दिक्‍कतें पैदा कर सकता है. ऐसे में भारत सरकार (Indian Govt.) ने ये स्‍पष्‍ट कर दिया है कि नॉनवेज दूध का मुद्दा एक नॉन-नेगोशिएबल रेड लाइन है, यानी इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं हो सकता.

क्‍यों कहा जाता है नॉन-वेज दूध? 

अमेरिकी डेयरी उत्पादों को भारत में ‘नॉन-वेज दूध’ कहा जा रहा है. कारण कि अमेरिका में गायें, नॉन-वेज चारा (मीट मील, ब्लड मील) खाती हैं. असल में अमेरिका और कई पश्चिमी देशों में गायों को हाई प्रोटीन डाइट दी जाती है, जिसमें मीट मील, बोन मील और ब्लड मील जैसे जानवरों के अवशेष शामिल होते हैं. इस तरह के चारे को रूमिनेंट फीड कहा जाता है. इसलिए ऐसी गायों से प्राप्त दूध को भारत में ‘नॉनवेज दूध’ माना जा रहा है.

क्‍यों है भारत का सख्‍त विरोध? 

देश में करीब 38% लोग शाकाहारी हैं. यहां की गायें भी पूरी तरह शाकाहारी हैं और घास, भूसा, चोकर, खल्‍ली जैसे चारा खाती हैं. वहीं अमेरिका में गायें जो चारा खाती हैं, वो नॉनवेज चारा होता है. ऐसे में हिंदु बाहुल्‍य देश के लिए अमेरिका के डेयरी प्रॉडक्‍ट्स को हरी झंडी देना काफी मुश्किल है.

खासकर, हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में दूध और घी जैसे डेयरी प्रॉडक्‍ट्स इस्‍तेमाल होते हैं, जबकि अमेरिकी डेयरी प्रॉडक्‍ट्स हिंदू आस्था और धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ होंगे. ये अस्‍वीकार्य होगा कि पूजा-पाठ में इस्‍तेमाल होने वाले दूध-दही-घी वगैरह में मांसाहारी तत्‍वों की जरा भी मौजूदगी हो. ऐसे में ये करोड़ों लोगों की भावनाओं पर भी आघात होगा.

ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था पर चोट की आशंका

एक बड़ा कारण ग्रामीण अर्थवयवस्‍था पर चोट की आशंका भी है. अमेरिकी डेयरी प्रॉडक्ट्स को भारत में अनुमति देने से देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और करोड़ों डेयरी किसानों की आजीविका पर असर पड़ेगा. भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और यहां लाखों किसान परिवार डेयरी पर निर्भर हैं. देश का डेयरी सेक्टर 7.5 लाख से 9 लाख करोड़ रुपये का है और ये जीडीपी में 3% योगदान देता है.

एसबीआई की ए‍क रिसर्च रिपोर्ट कहती है कि अगर अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट्स की भारत में एंट्री होने से यहां दूध की कीमतें 15% तक गिर सकती हैं, जिससे किसानों को 1.03 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है.

सर्टिफिकेशन दे तो बने रास्‍ता 

भारत सरकार के लिए ये मसला सिर्फ एक उत्पाद का नहीं, बल्कि संस्कृति, आस्था और आजीविका से जुड़ा है. इसलिए उसने स्पष्ट कर दिया है कि इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होगा. ऐसे में भारत सरकार ने अमेरिका से ये सख्त शर्त रखी है कि अगर वो अपने डेयरी प्रोडक्ट्स भारत में बेचना चाहता है, तो उसे स्पष्ट सर्टिफिकेट देना होगा कि दूध देने वाली गायों को कभी भी मांस आधारित चारा नहीं दिया गया है.

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