जमीन पर लेटकर निभा रहा संकल्प
हरिद्वार से बड़ौत की ओर दीपक बिना किसी सहारे, लाठी या साधन के खुद को भूमि पर लेटता हुआ कांवड़ लेकर चल रहा है। कुछ दूरी तक पेट के बल लेटता है, फिर खड़ा होकर कुछ कदम चलता है, फिर लेटता है और उसी जगह से फिर से इस प्रक्रिया को दोहराता है। हर कदम पर यही क्रम दोहराता है।
जब बड़ौत पहुंचने पर रास्ते में लोगों ने दीपक से पूछा कि भाई इतनी कठिन तपस्या क्यों?
तो उसकी आंख में आंसू थे और कांपती आवाज में जवाब दिया कि पिता की सांसे उधार थीं भोलेनाथ से… अब हर कदम उन्हीं को लौटाने निकला हूं..’ यह सुनकर वहां खड़े लोगों की आंखें नम हो गईं।
श्रद्धा, संकल्प और पुत्रधर्म की जीवंत मिसाल
दीपक की यात्रा आज सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि श्रद्धा, परिवार के प्रति प्रेम और भोलेनाथ पर अटूट आस्था की जीवंत तस्वीर बन गई है। यह कहानी बताती है कि जब श्रद्धा सच्ची हो, तो भोलेनाथ ‘शंकर’ से ‘संजीवनी’ बन जाते हैं।