बिहार में पुलिस का इकबाल कमजोर, सुशासन बाबू उठाएं कदम, नहीं तो माफिया राज का खतरा बढ़ेगा

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स्वदेशी टाइम्स, बिहार; बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नियम है कि बिहार या आस पास के इलाके में नौकरी करने वालों को हार्डशिप अलाउंस दिया जाता है. यानी खतरनाक जगह नौकरी करने के एवज में एक भत्ता मिलता है. जब नीतीश कुमार राज्य में सुशासन बाबू के तौर पर उभरे तो लगने लगा ये धब्बा बिहार के दामन से मिट जाएगा. रंगदारी वसूली और आर्गनाइज क्राइम जैसी चीजें घट गई थी. पुलिस सख्ती से कानून लागू कराती दिख रही थी. लेकिन अब फिर से हालात पुराने जैसे हो गए हैं. राजधानी में एक मानिंद उद्योगपति गोपाल खेमका की गोली मार कर हत्या कर दी गई.

हाजीपुर में इसी गोपाल खेमका के बेटे गुंजन खेमका की 2018 में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. उस समय उन पर गोली चलाने वाले कथित आरोपी को पकड़ा भी गया था. लेकिन उस आरोपी की भी गोली मार कर हत्या कर दी गई. फिर मामला अनसुलझा रह गया. गोपाल खेमका भारतीय जतना पार्टी के नेता भी रहे. लेकिन बेटे के मारे जाने के बाद राजनीति से अलग हो गए और अपने कारोबार पर ध्यान केंद्रित किया. उनकी कई फैक्टरियां हैं.
माना जाता है कि बेटे की हत्या रंगदारी वसूलने के चक्कर में की गई. हालांकि इस तरह की बात आधिकारिक तौर पर पुष्ट नहीं हो सकी. परिवार के स्वभाव और चाल चलन पर कभी कोई सवाल नहीं उठा. किसी से खेत जमीन का झगड़ा नहीं था. गोपाल खेमका की सामाजिक गतिविधि बांकीपुर क्लब तक सिमट गई थी. गोपाल खेमका के घर की हिफाजत में लगे गार्ड ने भी न्यूज 18 से पहली बात यही कही कि साहेब बहुत अच्छे इंसान थे.ऐसे में आखिर कौन उनकी हत्या करना चाहेगा? खेमका की हत्या में जमीन माफिया का जिक्र भी आ रहा है.

 

 

इसका मतलब है कि बिहार का रंगदारी कारोबार फिर से फल फूल रहा है. 28 जून को सिसरो अस्पताल के एक डॉक्टर को फोन करके दो करोड़ रुपये की रंगदारी मांगी गई. रंगदारी जो लोग न समझ रहे हों उन्हें बता दें कि इसे गुंडागर्दी टैक्स समझा जा सकता है. बदमाश धमकी देते हैं कि अगर मांगी गई रकम उन्हें नहीं मिली तो वे हत्या कर देंगे.

बिहार की स्थिति पर चर्चा करने पर वहां रह कर काम कर रहे पत्रकार बताते हैं कि दरअसल ये सारी स्थिति प्रशासन की लापरवाही से है. राज्य की पुलिस सब कुछ छोड़ कर वसूली में लगी दिख रही है. गाड़ियां चेक कर वाहन वालों से पैसे वसूलने और शराबबंदी कानून का डर दिखा भयादोहन करने में लगी है. राज्य में शराबबंदी है. वहां वो तो आराम से शराब की बोतलें ले जा सकता है जिसने पुलिस वालों को पैसे खिला दिए हों. लेकिन पुलिस वाले किसी को भी थोड़ी सी शराब की बरामदगी दिखा कर जेल का रास्ता दिखा सकते हैं.

पुलिस के इकबाल का आलम ये दिखता है कि बालू माफिया सीधे पुलिस वालों से भिड़ने में संकोच नहीं कर रहे. जमुई इलाके में बालू से लदा ट्रक पुलिस वालों से छीन कर बालू का धंधा करने वाले ले गए. इसके अलावा और भी गैरकानूनी काम करने में बालू माफिया पीछे नहीं हटते. एक नाबालिक बच्ची से बांका में बालू माफिया गैंगरेप जैसा घिनौना काम किया.
इस तरह की करतूतों पर तभी रोक लगाया जा सकता है जब पुलिस और सख्ती के साथ लोगों से पेश आए. अब तक ये देखा गया है कि जब भी राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत करके सत्ताधारी दल सख्ती करता है तो पुलिस का इकबाल कायम हो जाता है. अपराधी डर जाते हैं. बिहार को भी ऐसा ही करना होगा. नहीं तो ये राज्य विकास की दौड़ में पीछे ही रह जाएगा.

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