आपातकाल के लिए जरूरी हैं सायरन, 15 नए सायरन लगाने को मिली मंजूरी

स्वदेशी टाइम्स, देहरादून: भारत-पाक के रिश्तों में तनातनी के बीच मॉक ड्रिल में दून के सायरनों का सच सामने आया। 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान खरीदे गए सायरन सिस्टम अब दम तोड़ चुके हैं।
दून में सायरनों की धीमी आवाज का सच सामने आने के बाद भविष्य में किसी भी प्रकार की विषम परिस्थिति के लिए शहर में 15 नए इलेक्ट्राॅनिक सायरन लगाने को मंजूरी दी गई है।
सिविल डिफेंस के डिप्टी कंट्रोलर श्यामेंद्र साहू ने बताया कि इसमें 10 सायरन आठ किमी दूरी की क्षमता वाले होंगे। जबकि, पांच सायरनों की आवाज 16 किमी तक जा सकेगी। इन सायरनों को पुलिस थानों व चौकियों पर लगाया जाएगा। इन्हें कमांड एंड कंट्रोल सेंटर से सीधे जोड़ा जाएगा, जहां से केंद्रीयकृत व्यवस्था के तहत सभी सायरन एक साथ बज सकेंगे।
सायरनों की कम आवाज का मुद्दा उत्तराखंड शासन से लेकर दिल्ली तक गूंजा। शुक्रवार को महानिदेशक सिविल डिफेंस के समक्ष सायरनों की कम आवाज का मसला उठा। इसके बाद 15 नए सायरन लगाने को मंजूरी मिली।
आपातकाल के लिए जरूरी हैं सायरन
देहरादून भूकंप के लिहाज से खतरनाक जोन में है। इसके अलावा भी यहां बरसात व अन्य महीनों में प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बना रहता है। सतर्कता के लिहाज से सायरन दून की अहम जरूरत हैं। 1971 के बाद हुई टेस्टिंग में सामने आया कि पुराने सायरन अब कारगर नहीं रहे। शहर के लंबे क्षेत्रफल के लिए इलेक्ट्राॅनिक सायरन ही जरूरी हैं। शासन समेत डीजी सिविल डिफेंस ने भी नए सायरनों की खरीद पर अपनी सहमति दे दी है।
डीएम सविन बंसल ने कहा कि देहरादून में आपातकालीन चेतावनी प्रणाली को आधुनिक रूप दिया जाएगा। वर्ष 1971 से संचालित पुराने सायरन सिस्टम को उच्चीकृत किया जाएगा। इसके लिए बजट जारी कर दिया गया है। मॉक ड्रिल के दौरान खामियां सामने आने के बाद यह निर्णय लिया गया है।