बरेली: 80 हजार में पेड़ बिकने के बाद, हिस्सा न मिलने से नाराज बेटे ने पिता की गर्दन काटकर की हत्या

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स्वदेशी टाइम्स, बरेली : 80 हजार में पेड़ बिकने के बाद उस रकम में से हिस्सा न मिलने से नाराज होकर पिता की बांका से गर्दन काटकर हत्या करने के आरोपी पुत्र थाना हाफिजगंज के गांव टांडा दयानतपुर निवासी छविनाथ परीक्षण में दोषी पाया गया। अपर सत्र न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। वहीं, दो पौत्रों को दोषमुक्त कर दिया।

सरकारी वकील सुनील पांडेय के अनुसार योगेश ने थाना हाफिजगंज में तहरीर देकर बताया था कि उनके दादा ख्यालीराम के चार बेटे, जिनमें श्यामाचरन, भूपराम, मुरारीलाल व छविनाथ हैं, सभी अलग-अलग रह रहे थे, और दादा भी अलग रह रहे थे, लेकिन वह खाना भूपराम ताऊ के यहां खाते थे। 18 नवम्बर 2022 को शीशम, गूलर, जामुन के पेड़ 80 हजार रुपये में दादा ने बेचे थे।

20 नवंबर 2022 को वह घर पर था। सुबह तहेरे भाई महेन्द्र पाल ने बताया कि छविनाथ हाथ में बंका लेकर अपने दो पुत्रों श्रीपाल और बृजमोहन के साथ ताऊ के घर में गए। कुछ समझ पाते कि तब तक बचाओ की आवाज आई। तीनों लोग भागते हुए रोड पर चले गए। मौके पर जाकर देखा तो दादा ख्यालीराम की गर्दन पर भारी चोट व सिर, नाक व ठोड़ी पर बंका के घाव थे। बंका खून से सना पड़ा था। हाफिजगंज पुलिस ने हत्या के प्रकरण में छविनाथ, उसके दोनों पुत्रों के विरुद्ध हत्या समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। पुलिस ने जांच के बाद आरोपपत्र कोर्ट भेजा। इधर, कोर्ट में सुनवाई के दौरान शासकीय अधिवक्ता ने 12 गवाह पेश किए थे।

गवाहों ने नहीं देखी हत्या, परिस्थिति बनी सजा का आधार
80 वर्षीय पिता की निर्ममता पूर्वक हत्या करने के आरोपी छविनाथ (60) को अदालत ने गवाहों की गवाही को आधार मानते हुए परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर सजा सुनाई। हालांकि किसी भी गवाह ने ख्यालीराम की हत्या होते हुए नहीं देखी थी। लिहाजा, परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर आरोपी को दोषसिद्ध किया गया। पेड़ बेचने से ख्यालीराम को 80 हजार रुपये मिले थे, जिसमें से छविनाथ ने 20 हजार रुपये अपने हिस्से के मांगे थे, जिसको देने से मना करने पर छविनाथ ने पिता की हत्या की थी।

पिता के प्रति ऐसा भाव उत्पन्न होने पर दंड का भय हो
पुत्र द्वारा वृद्ध पिता की बांके से गला काटकर निर्मम हत्या की गई। वास्तव में दोषसिद्ध कठोर दंड का पात्र है, जिससे समाज में ऐसा संदेश जाए कि किसी भी पुत्र के मन में पिता के प्रति ऐसा भाव उत्पन्न होने पर उसको दंड का भय हो- ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी, अपर सत्र न्यायाधीश।

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